रेडियो भाषण, संगीत और संदेश प्रसारण का बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावशाली माध्यम है जिसने सारी दुनिया को कवर कर रखा है। सारी दुनिया में कहीं पर भी होने वाली घटना का हमें क्षणभर में पता लग जाता है। रेडियो केवल प्रसारण का ही साधन नहीं है बल्कि इसका प्रयोग अंतरिक्ष संचार में भी होता है। रेडियो द्वारा अनेक वस्तुओं के प्रभावशाली विज्ञापन आते हैं जिनके द्वारा वस्तुओं की बिक्री बहुत बढ़ जाती है।
संचार का माध्यम है रेडियो
रेडियो संचार प्रसारण का एक बहुत बड़ा माध्यम है लेकिन इसके अतिरिक्त रेडियो का प्रयोग पुलिस वाले, वायुयान के चालक, अंतरिक्ष यात्री, काम करने वाले कार्यकर्ता, फौज के सिपाही, जलयान चालक और बहुत से दूसरे लोग करते हैं। जो लोग बर्फीले और रेगिस्तानी क्षेत्रों में यात्रा करते हैं वे भी बाहरी दुनिया से संपर्क बनाकर रखते हैं और संकट के समय कोई भी मदद ले सकते हैं।
कभी-कभी रेडियो द्वारा अधिक संकट में फंसे मरीजों की जान भी बचाई जा सकती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का कोई विशेष समूह उपलब्ध नहीं है तो रेडिया प्रसारण द्वारा लोगों से प्रार्थना करके उस विशेष रक्त समूह का दान देने के लिए कहा जा सकता है। बहुत-सी जगह मोटर चालक और ट्रक चालक रेडियो जर की सहायता से अपने दोस्तों और मिलने वालों से बात करते हैं।
8 से 10 कि.मी. की दूरी तक वॉकी-टॉकी की सहायता से आप अपने मित्रों और संबंधियों से बात कर सकते हैं। वास्तव में रेडियो संचार का आश्चर्यजनक साधन है और जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है।
रेडियो के विकास का इतिहास | History of the development of radio
रेडियो का विकास एक दिन में किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं हुआ बल्कि बहुत-से अनुसंधान कत्र्ताओं ने एक सतत् प्रयास द्वारा इसका आविष्कार किया। इसमें वैज्ञानिकों ने रात और दिन परिश्रम किया। विद्युत चुम्बकीय तरंगों की खोज के बाद ही रेडियो संचार संभव हो पाया है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगे एक प्रकार की प्रकाश तरंगें होती हैं जिनकी आवृत्ति अलग-अलग होती है। इन तरंगों का आविष्कार सन् 1860 में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल द्वारा किया गया था। ये स्काटलैंड के भौतिक विज्ञानी थे चित्र 12.1 में जेम्स मैक्सवेल दिखाये गए हैं।
जर्मनी के भौतिकशास्त्री हीनरिक हर्ट्ज (Heinrich Hertz) ने अपनी प्रयोगशाला में विद्युत चुम्बकीय तरंगें पैदा को और वह अपनी प्रयोगशाला में इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने में सफल हुए। सन् 1895 में इटली के वैज्ञानिक गुगलीलनो मारकोनी ने इन तरंगों की सहायता से बेतार का तार खोजा।
रेडियो संचार में सन् 1901 में मारकोनी ने इंग्लैंड से अंध महासागर के आर-पार न्यू फाउंडलैंड तक कोडेड संदेश भेजने में सफलता प्राप्त की। इस आविष्कार से मारकोनी की प्रसिद्धि सारे संसार में फैल गई। इसी से रेडियो युग का आरम्भ हुआ। चित्र 123 में मारकोनी दिखाये गए हैं
रेगिनेल्ड एच. फैसन्डैन (अमेरिका) ने सन् 1906 में पहला मानवीय भाषण रेडियो तरंगों द्वारा प्रसारित किया। सन् 1910 में लीडेफोरेस्ट ने ट्रायोड वाल्व का आविष्कार किया। इससे पहला प्रयोगात्मक रेडियो प्रसारण संभव हो पाया। सन् 1918 में अमेरिका के वैज्ञानिक एडविन एच. आर्मस्ट्रांग ने सुपर हैट्रोडाइन परिपथ विकसित किया।
सन् 1983 में उन्होंने ही मोडूलन करके दिखाया। पहला व्यावसायिक रेडियो स्टेशन WWJ डिट्रॉइट में बनाया गया। इसके बाद में रेडियो प्रसारण सारो दुनिया में फैल गया।
सन् 1948 तक रेडियो सेट इलेक्ट्रॉनिक वाल्व प्रयोग करते थे लेकिन सन् 1948 में तीन वैज्ञानिकों ने ट्राजिस्टर का आविष्कार किया। इन तीनों वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। ट्रांजिस्टर का आकार बहुत छोटा होता है। इनकी मदद आज माचिस के आकार के रेडियो सेट मिलने लगे हैं। चित्र 12.2 में वाल्य और ट्रान्जिस्टर के आकार की तुलना की गई है।
रेडियो तरंगें क्या हैं | What are radio waves
रेडियो तरंगें प्रकाश तरंगों की तरह विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं। इनकी आवृत्ति हर्ट्ज में मापी जाती है। रेडियो प्रसारण के लिए प्रयोग होने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगे 150 KHZ से 30,000 MHZ तक की आवृत्ति वाली होती हैं। इन आवृतियों को 3 भागों में बाँटा गया है। मीडियम वेव, शॉर्ट वेव और अल्ट्रा शॉर्ट वेव प्रसारण केन्द्र से मीडियम वेब धरती की सतह के साथ साथ चलती है।
शॉर्ट वेव आइनोस्फीयर से दर्पण की तरह टकराकर वापिस आती है और अल्ट्रा शॉर्ट वेव संचार उपग्रहों तक जाती है और वहाँ से परावर्तित होकर धरती पर प्राप्त कर ली जाती है। मीडियम और शॉर्ट वेव का संचरण चित्र 12.4 में दिखाया गया है।
रेडियो तरंगों का प्रसारण आयाम मोडूलन या आवृत्ति मौडूलन द्वारा किया जाता है। आयाम मोडूलन में सदेश और वाहक को मिलाकर उनका आयाम बदलता है। आवृत्ति मोडूलन में संदेश और वाहक की आवृत्ति बदलती है। चित्र 12.5 में आयाम और आवृत्ति मौडूलन दिखाए गए हैं।
संदेश, कैरियर, अम्प्लीट्यूड मोडूलेटेड और आवृत्ति मोडूलेटेड तरंगें कोई भी रेडियो संदेश मोडूलन के बाद ट्रांसमीटर से प्रसारित किया जाता है। मीडियम वेव 100 से 150 कि.मी. तक जाने के बाद बहुत कमजोर हो जाती हैं। शॉर्ट वेव कई हजार किमी तक जा सकती हैं। आयाम मौडूलन में तरंगों का आयाम बदलता है जबकि आवृत्ति मौडूलन में आयाम स्थिर रहता है और आवृत्ति बदलती है।
रेडियो प्रेषी और ग्राही | Radio Transmitter and Receiver
एक रेडियो प्रेषी रेडियो केंद्र से जुड़ा होता है और वहीं से उसका नियंत्रण होता है जबकि रेडियो ग्राही हमारे घर में रेडियो सेट से जुड़ा होता है। रेडियो प्रेषी में मुख्य रूप से माइक्रोफोन, मौडूलेटर, एम्पलीफायर, औसीलेटर • प्रसारण एंटीना आते हैं।
प्रसारण केंद्र पर माइक्रोफोन के सामने बात करने वाला या गाने वाला बोलता है। माइक्रोफोन मुँह से निकलने वाली ध्वनि तरंगों को या वाद्य यंत्र से निकलने वाली आवाज को विद्युत तरंगों में बदल देता है। इन विद्युत संदेशों को फिर वाहक तरंगों के साथ जो औसीलेटर से आती हैं, मिला दिया जाता है।
संदेश और वाहक तरंगों का मिलना ही मोडूलन कहलाता है। मौडूलन तरंग को आवर्धक से आवर्धित किया जाता है और फिर इसे एंटीना द्वारा प्रसारित कर दिया जाता है।
मीडियम तरंगें सीधी धरती के साथ-साथ हमारे रेडियो सेट तक पहुँचती हैं, शॉर्ट वेव आयनोस्फीयर से परावर्तित होकर हमारे रेडियो तक पहुँचती हैं जबकि अल्ट्रा शॉर्ट वेव उपग्रह तक पहुँचती हैं। ये तीनों प्रकार की तरंगें हमारे रेडियो के एरियल से टकराती हैं और हमारे रेडियो सेट द्वारा मूल संदेश में बदल जाती हैं। चित्र 12.6 में रेडियो तरंगों का प्रसारण और प्राप्त करना दिखाया गया है।
हर रेडियो केंद्र की अपनी आवृत्ति होती है ताकि जब हम अपने रेडियो सेट को ट्यून करते हैं तो यह विशेष स्टेशन को पकड़ लेता है। कुछ केंद्रों के प्रसारण एंटीना केन्द्र में लगे होते हैं तो दूसरे कुछ के केंद्र से कई मील दूर होते हैं।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि आयाम मौडूलन में 535 KHZ तक की आवृत्ति प्रयोग की जाती है जबकि आवृत्ति मौडूलन में 38 से लेकर 108 MHZ की आवृत्ति प्रयोग की जाती है।
सामान्यतः हमारे सभी रेडियो सेट आयाम और आवृत्ति मौडूलित संदेशों को प्राप्त कर सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो केवल आयाम मौडूलित संदेशों और दूसरे कुछ आवृत्ति मौडूलित संदेशों को ही प्राप्त कर सकते हैं। सभी रेडियो सेट सामान्यतया विद्युत शक्ति से चलते हैं। ये विद्युत शक्ति बैटरी या सप्लाई लाइन से प्राप्त की जा सकती है।
सभी रेडियो सेटों में आजकल एंटीना अंदर ही लगा होता है। आज के समय में स्टीरियोफोनिक रेडियो सेट भी मिलते हैं। दुनिया का सबसे छोटा रेडियो सेट 3.5″ x 21″ x 0.5″ आकार का है और बैटरी समेत इसका वजन केवल 70 ग्रा. है।
आज की दुनिया में कई लाख रेडियो केंद्र दुनिया में हैं और कई करोड़ रेडियो सेट हैं। अकेले अमेरिका में 10,000 से अधिक रेडियो केंद्र हैं और 13 से अधिक रेडियो सेट हैं। आज हमारे देश में सौ से अधिक रेडियो केन्द्र हैं और 180 के लगभग ट्रांसमीटर हैं।