Thursday, November 21, 2024
HomeRashmirathiकर्ण-कुन्ती सम्वाद : रश्मिरथी आधारित कर्ण कुंती संवाद

कर्ण-कुन्ती सम्वाद : रश्मिरथी आधारित कर्ण कुंती संवाद

कर्ण कुन्ती का पुत्र है जिसका जन्म तब हुआ था जब कुन्ती कुमारी थी। कौमार्यावस्था में संतान का होना भारतीय संस्कृत में उचित नहीं माना जाता कुन्ती समाज के भय से कर्ण को मंजूषा में बन्द कर नदी में बहा देती है। किन्तु कर्ण बच जाता है। जब कौरव और पाण्डवी का युद्ध प्रारम्भ होने में केवल एक दिन शेष रहता है कुन्ती अत्यधिक शोकाकुल हो उठती है। वह सोचती है यह कितना बड़ा अनर्थ होगा यदि एक ही गोद के दो लाल और एक ही कोख के दो भाई अज्ञानतावश एक दूसरे का प्राण हरण करेंगे। वह इस संघर्ष को रोकने के लिए व्याकुल हो उठती है, क्योंकि वह सोचती है

"कर्ण कुंती संवाद" written on red background and animated image of karn

दो में जिसका उर फटे, फटूंगी में हो जिसकी भी गर्दन कटे, करूंगी मै ही।

कर्ण से मिलने कुंती खुद जाती है

कुन्ती के दोनों ही बेटे हैं-कर्ण और अर्जुन दोनों एक दूसरे के विरोध में एक दूसरे के प्राण लेने को आपस में लड़ेंगे-कुन्ती यह कैसे सहन कर सकती है? अतः एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वह कर्ण के पास पहुंचती है।

सन्ध्या का समय है। कर्ण सन्ध्या पूजा में ध्यानमग्न है। उसके मुख पर सूर्य की किरणे पड़ रही है, जिससे उसका मुखमण्डल प्रकाशमान हो रहा है। कुन्ती अपने पुत्र की यह शोभा निहार रही है। इससे थोड़ी देर के लिए वह अपने दुःख को भी भूल जाती है।

आहट पाकर कर्ण का ध्यान टूटता है। अपने सामने कुन्ती को देख वह अपना परिचय राधा का पुत्र कहकर देता है तथा कुन्ती को प्रणाम भी करता पूछता है कर्ण की,

“है आप कौन? किसलिए यहाँ आयी है?

मेरे निमित्त आदेश कौन लाई है?”

बातें सुनकर कुन्ती स्पष्ट शब्दों में बतलाती,

“राधा सूत तू नहीं, तनय मेरा है,

जो धर्मराज का वही वंश तेरा है। ” 

कर्ण अपने मन की तीखी बातें कहने लगता है। वह कहता है, तू कुरुकुल की रानी हो तथा अर्जुन की माँ हो। तू मेरी माँ होती तो किस तरह अपने कलेजे के टुकड़े को मृत्यु के मुख में सौंप आती। मुझे तो राधा ने पाला-पोसा है। वह मेरी सच्ची माँ है। राधा से उसका मातृत्व छीनकर तुम्हें नहीं दिया जा सकता, तू मेरी माँ नहीं हो सकती। उच्च कुल-जात बनकर अब राजकुल में प्रवेश पाने की मेरी कोई अभिलाषा नहीं। मैं अपने जन्म की कहानी श्रीकृष्ण से सुन चुका हूँ।”

कर्ण कुंती को स्वार्थी बतलाता है 

कुन्ती के अचानक युद्ध के एक दिन पहले आने के प्रसंग में कर्ण कहता है- 

तुम्हारा आज इतना अनुराग दिखलाना स्वार्थ से घिरा-सा लगता है। तुम मुझे मिलाने नहीं आयी हो वरन् फोड़ने के लिए आयी हो।

कर्ण स्पष्ट शब्दों में कुन्ती को बतलाता है “कुरुपति का मेरे रोम-रोम पर ऋण है।

आसान न होना उनसे कभी उऋण है। छल किया अगर तो क्या जग में यश लूँगा?

प्राण ही नहीं, तो उसे और क्या दूंगा ?” वह किसी भी किमत पर पाण्डवों का साथ नहीं दे सकता।

कर्ण की स्पष्ट उक्ति सुनकर कुन्ती विविध ढंग से समझाती है- 

मैं अपने कर्म पर जीवन भर पश्चाताप करती रहूँगी। 

तुम यह नहीं समझो कि मै तुझे चुराकर ले जाने आई हूँ। 

मैं तो तुझे समझाकर मनाकर अपने साथ ले जाने आयी थी, 

मैं विश्वास लेकर आयी थी कि तू बड़ा ही दानी है, 

अपनी माँ के आँचल को खाली नहीं जाने देगा।

अर्जुन के अलावा अन्य पांडवो को मिलता है जीवनदान

कुन्ती चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद देकर कर्ण को गले से लगा लेने को आगे बढ़ती है तो कर्ण को विह्वल होकर कहना पड़ता है माँ तू देर करके आयी फिर भी मैं तू तुझे खाली हाथ नहीं लौटने दूंगा। तुम्हारे साथ मैं नहीं चल सका इसके लिए मैं तुम्हारे पाँव पड़ता हूँ। तू मुझे क्षमा कर दे। हाँ, तुम्हारे सामने यह प्रण करता हूँ कि अर्जुन को छोड़, शेष चारों पाण्डवों का मेरे हाथ कोई अहित नहीं होगा। सच मान तो यह महाभारत का युद्ध कर्ण अर्जुन का ही युद्ध है। इसमें से एक के प्राण निश्चय ही जायेंगे।

कर्ण उसे समझाता है कि युद्ध के पश्चात् पाँचों पुत्र शेष रह ही जायेंगे। अर्जुन और कर्ण किसी एक की मृत्यु के बाद वह पाँच पुत्रों की माँ बनी रहेगी। कर्ण को भविष्य का ज्ञान है। पर उससे वह घबड़ाता नहीं। मात्र कर्तव्य पर डटे रहने के विचार से उसके मन में बड़ा उत्साह है। वह युद्ध के लिए तैयार है। इतना कहकर कर्ण वह माँ के पैर को छूता है, उसकी आँखों से आँसू की दो बूंदे गिरती हैं। कुन्ती अपने चुप हो जाता है। पुत्र का मस्तक चूमती है। पुत्र के सजल नयनों को देखती हुई तथा उसे आशीर्वाद देकर बिना कुछ कहे ही वह अपने घर लौट पड़ती है।

कर्ण और कुन्ती का सम्वाद कारुणिक होने के कारण अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ता है। यहाँ भी कवि, कर्ण के व्यक्तित्व को ऊँचा उठाता ही गया है। कर्ण की दृढ़ता, दानशीलता तथा कर्तव्य परायणता के चिन्ह यहाँ दिखलाई पड़ते हैं। कर्ण इन सभी दृष्टियों में विशिष्ट है, एकाकी है और महान है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments