Thursday, November 21, 2024
HomeRashmirathiरश्मिरथी का प्रतिपाद्य

रश्मिरथी का प्रतिपाद्य

‘रश्मिरथी’ की कथा वस्तु मौलिक नहीं है। यह ‘महाभारत’ से उद्धृत की गयी है। परन्तु यह कवि की मौलिक अनुभूति और अपनी विशिष्ट अभिव्यंजना शक्ति है जिससे उधार की कथा-वस्तु’ को उसने अपने ढंग से व्यक्त कर इसे एक नूतन कलाकृति के रूप में उपस्थित किया है। इस नूतन कलाकृति से कवि को चाहे जितना संतोष मिला हो पर ‘हिन्दी-साहित्य संसार में इस कृति का बहुत ही आदर हुआ है। महाभारत की कथा में कर्ण का प्रसंग बहुत ही उपेक्षित था। उस उपेक्षित प्रसंग को ही केन्द्र बिन्दु मानकर कवि ने इस पर इतने सारे रंग चढ़ाये कि यह रचना एक आकर्षक कृति के रूप में हमारे सम्मुख उपस्थित हुई है। मात्र अतीत का स्वर सुनाना कवि ने कभी पसन्द नहीं किया। अतीत को वर्तमान की भावनाओं और उसके विचारों से संयुक्तिकर ही कवि प्रगतिशील बन सका है, और उसकी प्रगतिशीलता की सफलता तब दीख पड़ती है जब वर्तमान को छू सकने वाले भाव और विचार भविष्य के लिए प्रकाश-स्तम्भ का भी काम करते है। इस सफलता का आधार न केवल कवि की सफलता ही मानी जायगी, वरन् यह उसकी काव्य-कृति की सफलता तथा सफलकाव्य का लक्षण माना जायगा, रश्मिरथी में सफल काव्य के तत्व वर्तमान है।

"रश्मिरथी का प्रतिपाद्य" written on red background and animated image of books

कर्ण का रोचक एवं मार्मिक चित्रण

देश की स्वतंत्रता से पूर्व कवि ने ‘कुरुक्षेत्र’ लिखा था सन् 1946 में। परन्तु इस काव्य-ग्रन्थ को उतना आदर नहीं प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् ही ‘रश्मिरथी’ का प्रकाशन सन् 1952 ई. में हुआ। इस काव्य पुस्तक में कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कवि ने ‘नव-मानव’ की स्थापना का प्रयास किया। स्वतंत्र देश में ‘आदर्शोन्मुखी नव-मानव विशेष रूप से आकर्षण का केन्द्र बन गया। इस आधार पर ‘रश्मिरथी’ में सफलता पाने के लक्षण युग के अनुसार स्वतः वर्तमान थे, यद्यपि कई आलोचकों ने कर्ण के चरित्र को गहरे विवाद का विषय बना दिया है तथा कवि के इस प्रयास को निरर्थक, गलत, अनैतिहासिक, खोखला और असामाजिक बतलाया है, पर पुस्तक के अनेक मार्मिक स्थल तथा कथोपकथन की सजीवता ने उसे रोचक और प्रभावशाली बनाया है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।

क्या रश्मिरथी महाकाव्य है ? 

‘रश्मिरथी’ को महाकाव्य मानने के संबंध में यह कहा जा सकता है कि महाकाव्य के तत्व इसमें वर्तमान नहीं है। ‘महाकाव्य’ के लिए जीवनकी जिस विराटता, गम्भीरता और विशदता की आवश्यकता होती है, उसका रश्मिरथी में सर्वथा अभाव है। मात्र कर्ण के चरित्र के वर्णन में, महाकाव्य के उपर्युक्त गुणों का समावेश नहीं हो पाया है। महाकाव्य के लिए आठ से अधिक सर्ग होना चाहिए जो इसमें नहीं है। महाकाव्य का नायक कोई देवता अथवा कोई विख्यात एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिए। रश्मिरथी का नायक “कर्ण’ कवि के द्वारा भले ही बहुत अधिक प्रकाशित किया गया हो, पर वह महाकाव्य का नायक होने का गुण नहीं रखता। रामायण, महाभारत, रामचरितमानस, साकेत आदि की रश्मिरथी से तुलना करने पर इसके महाकाव्य न होने के प्रमाण अवश्य मिल जायेंगे।

महाकाव्य में किसी एक युग का पूर्ण स्वरूप सामने आता है। रश्मिरथी में कोई युग-दर्शन नहीं है। यहाँ तो अतीत और वर्तमान का स्वरूप एक जगह लाकर नया सन्देश देने में ही कवि का पूरा रंग खर्च हो गया है। एक विशाल पृष्ठभूमि के लिए उनके पास कोई रंग ही नहीं बचता।

महाकाव्य की सीमा नहीं होती। वह देश और काल को लांघर ‘विश्व-मानव’ या ‘विश्वात्मा’ की स्थापना करता है। यह विश्वात्मा’ सर्वत्र समान रूप से आदर पाती है। इसके सन्देश स्थायी होते हैं। ‘रश्मिरथी’ में ये तत्व ढूढ़ने से नहीं मिलेंगे।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments