जानिए संक्षेपण क्या है ? संक्षेपण के प्रयोग एवं महत्व के साथ साथ इसके सामान्य नियमों का वर्णन। जिनकी मदद से आप अपने हिन्दी गद्य का संक्षेपण बेहद ही आसानी से कर सकेंगे.
संक्षेपण क्या है ?
संक्षेपण वह रचना-रूप है जिसमें समास शैली के माध्यम से किसी रचना का सार तत्व लगभग एक तिहाई शब्दों में उपस्थित किया जाता है। मतलब यह है कि किसी भी लम्बे कथन को जब हम संक्षिप्त कर श्रोता के समक्ष या
पाठक के समक्ष उपस्थित करते है तो वहीं संक्षेपण की क्रिया कहलाती है। किसी भी विचार को अभिव्यक्त करने की दो शैलियाँ होती हैं-व्यास-शैली और समास-शैली।
जब हम अपने विचारों को विस्तार के साथ स्पष्टतः अभिव्यक्त करते हैं तो वह व्यास शैली कही जाती है।
परन्तु, किसी के विचारों को जब हम छोटा कर स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं तो वह समास शैली कही जाती है।
संक्षेपण के लिए इसी समास शैली का प्रयोग किया जाता है।
संक्षेपण एक कला है जो कुछ नियमों के आधार पर टिका है।
इसका यह मतलब नहीं कि केवल नियमों को जान बूझ लेने के बाद ही संक्षेपण में दक्षता हासिल हो गई, बल्कि उसके लिए सतत् प्रयास और अभ्यास की आवश्यकता है।
केवल नियमों की जानकारी प्राप्त कर लेने मात्र से ही हम सोपण को सही नहीं बना सकते।
इसलिए, यह आवश्यक है कि इस कला को हासिल करने के लिए इसके नियमों को समझे और तदनुकूल अभ्यास भी करें ताकि संक्षेपण करने में दक्षता प्राप्त हो सके।
संक्षेपण का महत्व
किसी भी बात को संक्षेप में इस प्रकार बोला या लिखा जाए कि सुनने या पढ़ने वाला उन तमाम बातों का सही सही अर्थ लगा ले और मूल का कोई अनिष्ट भी न हो, संक्षेपण की कला है।
यह कला संस्कृत की सूक्तियों में उर्दू शायरी में तथा हिन्दी एवं अंग्रेजी के कुछ उच्च कोटि के लेखकों में देखी जा सकती है।
इस दृष्टि से बिहारीलाल सर्वश्रेष्ठ माने जा सकते हैं- ‘सतसइया के दोहरे अरु नावक के तीर, देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर। हिन्दी के कथा-सम्राट प्रेमचंद की शैली में भी संक्षिप्तता का चमत्कार बरकरार है।
पाश्चात्य दार्शनिकों और साहित्यकारों ने भी संक्षिप्ता की शैली को एक गुण माना है। होरेस के कथनानुसार, ‘व्यर्थ शब्द केवल उसी की लेखनी से निकालते है, जिसकी स्मृति में बहुत अधिक अनावश्यक बातें भरी होती है।’
ध्यातव्य है कि श्रेष्ठ लेखक वह नहीं है जो जानता है कि क्या लिखना चाहिए, बल्कि वह है, जो जानता है कि क्या नहीं लिखना चाहिए।
संक्षेपण एक प्रकार की साहित्यिक मितव्ययिता है। इसलिए इसके महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
संक्षेपण भाषा शिक्षण का एक अत्यन्त मूल्यवान अंश है। इसके द्वारा विद्यार्थियों की मानसिक योग्यता, ग्राहिका-शक्ति और अभिव्यंजना शक्ति की सम्मिलित परीक्षा हो जाती है।
संक्षेपण हमारी अभिव्यक्ति क्षमता को नियंत्रित कर उसे अधिक प्रभावपूर्ण एवं उपयोगी बना देता है।
संक्षेपण एक मानसिक अनुशासन है। यह हमें ग्रहणशील पाठक बनाता है, हमारी विवेक-शक्ति को जागृत करता है, और हमारी अभिव्यंजना को निखार देता है।
यह हमें सिखाता है कि किस प्रकार कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण शैली में, तटस्थ भाव से अपने या दूसरों के विचारों को उपस्थित किया जा सकता है। यह हमारे चिंतन को चुस्त बनाता है और अनर्गल प्रलापों से बचाता है।
लेखन और अध्ययन में तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों में, ये गुण लाभदायक हैं, अनुभव से ही जाना जा सकता है।
संक्षेपण कैसे करें | संक्षेपण के सामान्य नियम
1. दिए गए मूल अवतरण के अन्तर्गत मूल विचारों को समझने के लिए कम-से-कम तीन बार मूल संदर्भ को पढ़ना अपेक्षित है अथवा दिए गए मूल अवतरण को पढ़कर उसके मूल विचारों को ध्यान में रखें।
2. मूल अवतरण के महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य विचार-बिन्दुओं को रेखांकित कर उन्हें क्रमबद्ध रूप से लिख लेना चाहिए।
3. विचारों में क्रमबद्धता लाने के लिए यह आवश्यक है कि पहले मुख्य विचार-विन् को रखा जाए और फिर इससे सम्बद्ध सहायक विचार-बिन्दु को रखें।
4. संक्षेपण के लिए यह आवश्यक है कि उसमें अपनी ओर से न तो कोई टीका-टिप्पणी की जाए और न कोई अपना मौलिक और स्वतंत्र विचार ही जोड़ा जाए। संक्षेपक को पूर्णत: तटस्थ होना चाहिए।
5. विभिन्न विचार-बिन्दुओं का खाका तैयार हो जाने के बाद मूल अवतरण में आए। शब्दों की संख्या के एक तिहाई शब्दों में संक्षेपण प्रस्तुत किया जाए।
6. यदि किसी निश्चित शब्द-संख्या में ही संक्षेपण तैयार करने को कहा जाए तो उतनी ही शब्द-संख्या में प्रस्तुत किया जाए। चाहे वह एक-तिहाई शब्द-संख्या हो या न हो।
7. शब्दों की गिनती में विभक्तियों को अलग शब्द-संख्या नहीं रखना चाहिए।
जैसे- ‘राम ने’ को दो शब्द नहीं, एक ही मानना चाहिए। इसी तरह सामासिक पदों में भी दो सामासिक पदों को एक ही मानना चाहिए।
जैसे- राज कुमार, रात-दिन इत्यादि सामासिक शब्द एक-एक ही हैं।
8. संक्षेपण में एक सटीक शीर्षक देना चाहिए जो संक्षेपण के मूल विषय से सम्बद्ध और आकर्षक हो
9. संक्षेपण में विचार बिल्कुल स्पष्ट रूप से व्यक्त होना चाहिए। इसके लिए भाषा सीधी-सादी, साफ-सुथरी, व्याकरण सम्मत तथा प्रवाहपूर्ण हो ।
10. संक्षेपण के अंत में प्रयुक्त शब्दों की संख्या मूल अवतरण की शब्द-संख्या के साथ कोष्ठक में लिख देनी चाहिए।
11. संक्षेपण सामान्यतः भूतकाल और परोक्ष कथन में लिखना चाहिए।
12. संक्षेपण में अन्य पुरुष का प्रयोग होना चाहिए।
हम स्वर्ग की बात क्यों करें? हम वृक्षारोपण करके यहाँ ही स्वर्ग क्यों न बनावे ? समस्त इतिहास में महान सम्राट अशोक ने कहा है “रास्ते पर मैंने वट वृक्ष रोप दिये हैं, जिनसे मानव एवं पशुओं को छाया मिल सकती है।
आम्र वृक्षों के समूह भी लगा दिये हैं।” आज प्रभुत्व सम्पन्न भारत ने इस महाराजर्षि के राजचिन्ह ले लिए हैं। 23 सौ वर्ष पूर्व उन्होंने देश में जैसी एकता स्थापित की थी, वैसी ही हमने भी प्राप्त कर ली है।
क्या हम उनके इस सन्देश को सुन नहीं सकेंगे? हम इस सन्देश को सुनकर निश्चय ही ऐसा प्रबंध करेंगे जिससे भारत के सभी प्रजाजन कह सकें कि हमने जो रास्ते पर वृक्ष लगाये थे, वे मानवों और पशुओं को छाया देते हैं।
वृक्षारोपण का महत्व
संक्षेपीकरण :- सम्राट अशोक ने मानव एवं पशुओं के हित के लिए सड़कों पर वृक्ष लगा कर भूमि को स्वर्ग बनाया। उन्होंने देश में एकता स्थापित की थी। वर्तमान सरकार ने उन्हीं के संदेश के आधार पर देश में एकता स्थापित की है और वृक्षारोपण किये हैं।
अकबर का विद्या प्रेम
अकबर विद्वान न था पर रसिक अवश्य था। हिन्दी कवियों का वह बड़ा आदर करता
और स्वयं कविता करता था। वह विद्या प्रेमी भी था और उसने भिन्न-भिन्न भाषाओं की पुस्तकों का संग्रह कर एक बड़ा पुस्तकालय स्थापित किया था।
वह अच्छी-अच्छी पुस्तकों का अनुवाद भी करता था। उसके ऐश्वर्यपूर्ण राजत्वकाल में फारसी, संस्कृत, उर्दू, और हिन्दी का पठन-पाठन जोरों से चलता था।
हिन्दू और मुसलमान दोनों साहित्य से प्रेम रखते थे और कविता करते थे। उस समय के हिन्दु-मुसलमानों की एकता प्रशंसनीय थी, कारण कि दोनों को साहित्य का परस्पर ज्ञान और सहानुभूति थी।
साथ ही सत्कवियों का आदर भी था। जब बादशाह इन लोगों को मानता तब उसके दरबार के अमीर-उमराव भी अपनी शक्ति के अनुसार मान में कमी नहीं करते थे।
अकबर का विद्या प्रेम
संक्षेपीकरण:- अकबर विद्वान न था, पर विद्या प्रेमी था। उसके दरबार में सत्कवियों का आदर होता था। वह कवि और अनुवादक था। उसके पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओं की पुस्तकें थी। हिन्दू-मुसलमान हिले-मिले रहते और परस्पर एक-दूसरे से प्रेम रखते थे।
धरती का कायाकल्प, यही देहात की सबसे बड़ी समस्या है। आज धरती रूठ गई है। किसान धरती में मरता है पर धरती पर उपज नहीं होती।
बीज के दाने तक कहीं-कहीं धरती पचा जाती है।
धरती से अन्न की इच्छा रखते हुए गाँव-गाँव के किसानों ने परती-जंगल जोत डाले, बंजर तोड़ते-तोड़ते किसानों के दल थक गये पर धरती न पसीजी और किसानों की दरिद्रता बढ़ती चली गई।
‘अधिक अन्न उपजाओ’ का सूग्गा पाठ किसान सुनता है।
वह समझता है कि अधिक धरती जोत में लानी चाहिए। उसने बाग-बगीचे के पेड़ काट डाले, खेतों को बढ़ाया पर धरती ने अधिक अन्न नहीं उपजाया।
अधिक धरती के लिए अधिक पानी चाहिए, अधिक खाद चाहिए। धरती रूठी है, उसे मनाना होगा, किसी रीति से उसे भरना होगा।
(शब्द संख्या 128)
धरती की समस्या
संक्षेपीकरण: धरती का कायाकल्प देहात की बड़ी समस्या है। अधिक अन्न उपजाओ के लिए किसानों के बैल बंजर, परती और बाग-बगीचे जोतते-जोतते थक गये, लेकिन अधिक अन्न नहीं उपजा। इसके लिए अधिक पानी और खाद चाहिए। इसी से रूठी धरती मान सकेगी।
(शब्द सं० 42)
उदाहरण-4 :
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में उद्देश्य होना चाहिए। यदि तुम्हारा कोई उद्देश्य नहीं है तो तुम सफल न होगे। इसको तुम्हे जानना आवश्यक है।
उद्देश्यहीन मनुष्य बिना पतवार की नाव की तरह है। विभिन्न मनुष्यों के विभिन्न उद्देश्य होते हैं।
बहुत लोग धन कमाना चाहते हैं और धन कमाना ही उनका उद्देश्य बन जाता है।
कुछ लोग केवल आनन्द उठाना चाहते हैं, कुछ लोग विद्या के लिए परेशान हैं। कुछ लोग सिर्फ बड़ाई चाहते हैं। तुम्हारा उद्देश्य देश की सेवा करना होना चाहिए। तुम्हारा देश दरिद्र है।
यहाँ किसान सच्चे, सरल और पवित्र हैं। वे भूमि को अच्छी बनाकर अपनी मेहनत की अच्छी मजदूरी नहीं निकाल सकते। तुम उन्हें योग्य और सफल किसान बनाने का उद्योग कर सकते हो। (शब्द संख्या 121)
जीवन का उद्देश्य
संक्षेपीकरण:- उद्देश्यहीन मनुष्य का जीवन असफल होता है। कई तरह के उद्देश्यों में देश सेवा का उद्देश्य उत्तम है। किसान अच्छी उपज नहीं कर पाते, इसलिए देश दरिद्र है। उन्हें योग्य और सफल किसान बनाने का उद्योग होना चाहिए। (शब्द संख्या 40)
उदाहरण-5
“मेरी समझ में केवल मनोरंजन काव्य का साध्य नहीं है। कविता पढ़ते समय मनोरंजन अवश्य होता है पर उसके उपरान्त कुछ और भी होता है। मनोरंजन करना कविता का प्रधान गुण है जिससे वह मनुष्य के चित्त को अपना प्रभाव ज़माने के लिए वस में किये रहती है.
उसे इधर-उधर जाने नहीं देती। यही कारण है नीति और धर्म-संबंधी उपदेश वित्त पर वैसा असर नहीं करते, जैसा कि काव्य या उपन्यास से निकली हुई शिक्षा असर करती है। कविता अपनी मनोरंजन शक्ति द्वारा पढ़ने या सुनने वाले का चित्त उचटने नहीं देती, उसके हृदय के मर्म स्थानों को स्पर्श करती और सृष्टि में मानवीय गुणों का प्रसार करती है।”
(शब्द संख्या 112)
कविता का लक्ष्य
संक्षेपीकरण:- “कविता का लक्ष्य मनोरंजन के साथ मानवीय गुणों का प्रसार भी है।” धर्म और नीति के उपदेश शुष्क होते हैं। सरस और मर्मस्पर्शी होने के कारण कविता अधिक प्रभावोत्पादक होती है।
(शब्द संख्या 34)
उदाहरण-6
भारत का काव्य रूपी आकाश-मण्डलं अगणित प्रभावपूर्ण जुगनुओं से देदीप्यमान है, पर तुलसीदास का तेज, उज्ज्वलता और चमत्कार उनकी प्रदीप्ति, कान्ति और कीर्ति कुछ और ही है।
वे इस आकाश-मंडल के असंख्य चमकीले तारों के बीच मध्यान्हकालीन प्रचंड मार्तण्ड के समान प्रकाशमान है। तुलसीदास हमारे लिए ही नहीं, हमारी आगामी सन्तानों के लिए भी एक अनुकरणीय और अनुपम आदर्श हैं।
जो स्थान अंग्रेजी साहित्य में महाकवि शेक्सपीयर का है, उससे कहीं ऊँचा स्थान हम हिन्दी साहित्य में तुलसीदास को देते हैं।
क्यों न दे? वे कोरे कवि नहीं थे, वरन् वे थे एक अद्वितीय चरित्र वाले कवि सम्राट, परमोच्च श्रेणी के महात्मा के अनन्य भक्त और नीति के पथ प्रदर्शक, दार्शनिक, गंभीर तत्वों को सरस-सरल शब्दावली में समझाने वाले उपदेशक एवं भविष्य के गर्भ में निहित घटनाओं को बतलाने वाला महात्मा।
(शब्द संख्या 133)
कवि तुलसीदास
संक्षेपीकरण:- भारत के कवियों में तुलसीदास का सर्वोच्च स्थान है। वे आगामी पीढ़ियों के लिए भी आदर्श रहेंगे। अंग्रेजी में जो सम्मान शेक्सपीयर का है, उससे बढ़कर हम तुलसीदास का सम्मान करते हैं क्योंकि तुलसीदास महात्मा, भक्त, नीतिज्ञ, दार्शनिक, उपदेशक, भविष्यद्रष्टा और कवि सम्राट भी थे।
उदाहरण-7 :
मनुष्य समाज का वर्णन सभी देशों के शास्त्रकारों ने विराट पुरूष के रूप में किया है। उन्होंने समाज के भिन्न-भिन्न अंगों की उपमा शरीर के अंगो से दी है।
उन्होंने दर्शाया है कि जिस प्रकार सारे शरीर की स्थिरता, समृद्धि, उन्नति के लिए प्रत्येक अंग का निर्धारित काम करते जाना आवश्यक है, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न अंगों का भी अपना अपना कर्तव्य पालन करते रहना समाज के जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
वे बतलाते हैं कि एक अंग की हानि होने से सबकी हानि होती है। यदि पैर में चोट लग जाये, तो सारा शरीर कष्ट पाता है, केवल हाथ नहीं।
(शब्द संख्या 123)