हमारे भारतीय समाज में लोग लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों का प्रयोग बड़े चाव से करते है. कई लोग पुस्तैनी तौर पर इनके अर्थ से वाकिफ है तो कई सिर्फ सुनते आ रहे है किन्तु इन लोकोक्तियों का अर्थ नहीं जानते.
1. जहाँ चाह वहाँ राह
यह जीवन में सफलता प्राप्त करने की कुंजी है। बिना चाह उत्पन्न हुए हम जीवन के किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। चाह उत्पन्न होने का मतलब है कि हममें सच्चे मन से काम करने की रूचि पैदा हो जाए जो विद्यार्थी अपनी असफलता के लिए अपने माता-पिता को दोषी ठहराते है, वे अपनी गलती पर ध्यान नहीं देते। उनकी असफलता का सबसे बड़ा कारण तो यह था कि उनमें पढ़ने की चाह ही नहीं थी। यदि वास्तव में उनमें पढ़ने की चाह उत्पन्न हुई होती तो सफलता का रास्ता अपने-आप निकल आया होता समाज में ऐसे हजारों गरीब विद्यार्थियों के उदाहरण भौजूद है जिनके पास पढ़ने का कोई साधन नहीं था, फिर भी उन्होंने हमेशा परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की।
सच्चे मन से काम करने से कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाते है। जीवन में सफलता की कुंजी यही है कि हम इच्छा शक्ति हो। ऊपरी मन से काम करने से हम सफल नहीं हो सकते दृढ संकल्प और उत्कट चाह का अपना विशिष्ट स्थान है। इनके चलते रास्ते की सारी कठिनाइयों दूर हो जाती है और हमें अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचने में सफलता मिल जाती है। जो लोग जीवन में सफल नहीं होने पर अपने भाग्य को कोसा करते है वे मद्यपूर्ण है। उन्हें यह सोचना चाहिए कि क्या उन्होंने सफल होने के लिए अपनी उत्कट चाह से किसी काम को शुरू किया है? जहां सच्ची चाह होती है, वहाँ रास्ता भी निकल आता है। नेपोलियन बोनापार्ट का करता था कि असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोष में मिलता है। बलवती नाह और काम में रुचि रखनेवाले को जीवन में सफलता नहीं मिले, यह हो ही नही सकता।
2. मन के हारे हार है मन के जीते जीत
वीर कुंवर सिंह अस्सी वर्ष के थे तब भी उनमें यौवन था ये शरीर से बूढ़े थे, पर मन से वे अन्त -अन्त तक जवान बने रहे। उन्होंने मरते दम तक अंग्रेजी की अधीनता स्वीकार नहीं की। युद्ध में परास्त होने के बाद राजा पुरु को सिकन्दर के सामने लाया गया। सिकन्दर ने जब यह पूछा, तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाय? तो पुरु ने तुरत उत्तर दिया- “जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। राजा गुरु ने मानसिक रूप से कभी हार नहीं मानी थी, इसीलिए उसने ऐसा जवाब दिया था। यदि उसने अपनी हार स्वीकार कर लो होतो तो उसका जवाब होता ‘जैसी आपको मर्जी। राजा बुश को उस मकड़े से शिक्षा मिली थी जो सतह बार निर्मित जाले के धागे से ऊत्पर बढ़ने के क्रम में नीचे गिरा था, पर उसने हार नहीं मानी। यदि उस मकड़े का मन चक गया उसकी इच्छा शक्ति समाप्त हो गई होती तो वह कभी ऊपर नहीं पढ़ पाता।
मन ही हमारे जीवन में सफलता विफलता का है। मन में टूढ़ता है, तो सफलता अवश्य मिलेगी। कामचोर मन से सफलता नहीं मिलती। व्यावहारिक जीवन में कामनीर और दुर्बल दिखाई पहोवाले लोग अपने जीवन में सफलता इसलिए प्राप्त करते हैं कि उनका मन मजबूत होता है और उद्देश्य प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प है
जीवन सफलता के लिए यह आवश्यक है कि अपने मन को सदा दद रखें। मन के बल पर ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजा को परास्त किया और अपने देश को स्वतंत्र किया। जीवन संघाम में विजयी बनने के लिए शरीर का मुटापा आवश्यक नहीं, मन की दृढ़ता आवश्यक होती है।
3. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता
इस कहावत से एकता के महत्त्व पर प्रकाश पड़ता है। वास्तव में एकता हो बल है। रस्सी का एक धागा आसानी से टूट जाता है, पर जब कुछ धागों को एक साथ जोड़ दिया जाता है, तो वह आसानी से नहीं टूट सकता।
समुदाय या संघ में अपार शक्ति होती है। कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी जब अपना संघ तैयार करता है, तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है। चीटी बहुत छोटा जीव होती है, पर एकता के बल पर अपने से सौगुने बड़े जीव को भी वह परास्त कर देती है। बड़े से बड़े साँप की देह से चीटियाँ चिपक जाएँ तो उस सांप की जान मुश्किल में पड़ जाती है। अकेला व्यक्ति चाहे वह लाख बलवान हो, पाँच-दस व्यक्तियों की एकता के समक्ष अपनी हार मान लेता है। चरा कितना ही पुष्ट क्यों न हो, यह अकेले भाड़ नहीं फोड़ सकता।
“अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता का यह अर्थ हुआ कि व्यक्ति का अपना कोई महत्व और अस्तित्व नहीं होता। महापुरुष हजारों की संख्या में नहीं होते, वे गिनती में दो चार हो होते हैं, पर उनके इशारे से सारा युग ही बदल जाता है। पर महापुरुषों में युग बदल देने की सामर्थ्य आती कहाँ से यह सामान्य जनता से ही आती है। सामान्य जनता अपनी श्रद्धा से किसी व्यक्ति को महान् बना देती है जिससे उस व्यक्ति में युग को बदल देने की शक्ति आ जाती है।
4. अपजल गगरी छलकत जाए
भरी हुई गगरी छलकती नहीं है। आधी भरी हुई गगरी छलकती है। किसी गगरी को पानी से लबालब भर दीजिए और उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाइए क्या मजाल कि एक बूंद पानी छलके किसी गगरी को आधा ही भरिए और उसे कहों ले जाइए. देखिए उसका पानी छलक रहा है और उसमें से आवाज भी आ रही है। छलकता तो कमी के कारण होता है, पूर्णता में छलकन कहाँ।
पूर्ण ज्ञानी अपने ज्ञान का प्रदर्शन छिउलेपन के साथ नहीं करता। धनवान और बलवान पुरुष गंभीर हो जाते हैं। जिनमें ज्ञान बल तथा धन का अभाव होता है, वे ही अपने ज्ञान, बल और धन की प्रशंसा करते है। अधजल गगरी छलक कर यह दिखाना चाहती है कि उसमें पानी भरा है। पर, मुँह तक भरी हुई गगरी का पानी नहीं छलकता। उसे पूर्णता के प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
छोटी-छोटी नदियाँ बरसात के दिनों में उमड़ जाती है। बरसात समाप्त होते ही वे पहले के समान ही दुर्बल और हीन हो जाती है। गर्मी के दिनों में तो वे एकदम सूख जाती है। पर वही समुद्र है जो हमेशा एकसमान रहता है। उसमें दिन रात सैकड़ा नदियाँ गिरती है, फिर भी वह अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। सज्जन और महापुरुष समुद्र की तरह धीर और गंभीर होते हैं। उनमें प्रदर्शनप्रियता नहीं होती। गंभीरता के अभाव में कोई व्यक्ति सच्ची प्रशंसा का अधिकारी नहीं होता।
5. यदि फूल नहीं वो सकते तो काटे भी कम-से-कम मत बोओ
मनुष्य के लिए भलाई करना सरल नहीं है। मनुष्य बुराई तो कर सकता है, पर भलाई ही मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति यह है कि यदि वह मनुष्य की भलाई नहीं कर सकता है तो वह उसको बुराई अवश्य ही करता है, लेकिन मनुष्य की प्रवृत्ति यही नहीं होनी चाहिए। यदि किसी का कार्य बना नहीं सकता, तो उसे उसको बिगाड़ नहीं चाहिए।
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