प्रारूपण क्या है ?
उच्चकोटि का आलेखन या प्रारूपण (Advanced Drafting) शासकीय एवं कार्यालयीय पत्र-व्यवहार के लिए प्रयुक्त होता है। कार्यालयों में आवती या प्राप्ति पत्र पर जब टिप्पणी लेखन का कार्य समाप्त हो जाता है तब उसके आधार पर पत्रोत्तर का जो प्रारूप तैयार किया जाता है, वह प्रारूपण कहलाता है।
मूल रूप में प्रारूपण टिप्पणी कार्य पर ही आधारित होता है। इसे मसौदा या मसविदा भी कहा जाता है। इसे आवश्यकतानुसार लिपिक से लेकर उच्चतम अधिकारी तक तैयार करता है। इसलिए प्रारूपण एक कला है जिसे प्रत्येक व्यक्ति को जानना चाहिए।
प्रारूपण की विशेषताएँ
1. शुद्धता
प्रशासकीय प्रारूपण का बड़ा महत्व होता है। चाहे पत्र के रूप में हो या ज्ञापन के रूप में, उसमें सामग्री एवं प्रस्तुतीकरण का प्रयोग शुद्धता से होना चाहिए। शुद्धता से मतलब है कि प्रारूपण-संबंधी सभी निर्देश, संख्या, तारीख और कथन-शुद्धि इनमें से किसी को लिखने में थोड़ी सी भी अशुद्धि हो जाए तो परिणाम बड़ा ही घातक हो सकता है।
2. परिपूर्णता
प्रशासकीय कर्मचारियों का प्राय: तबादला होता रहता है, अतः आवश्यक है कि जो भी पत्र लिखा जाए, वह अपने आप में पूर्ण तथा स्पष्ट हो। उसमें किसी प्रश्न की न तो गुंजाइश हो और न ही किसी जानकारी की अतिरिक्त आवश्यकता महसूस की जाय क्योंकि यदि पत्र में अपेक्षित पूर्णता एवं स्पष्टता नहीं होगी तो स्थानांतरित कर्मचारी को उसे ठीक से समझने में कठिनाई होगी। ऐसी स्थिति में उस पत्र पर कार्रवाई करने में देर होना स्वाभाविक होगा। इसलिए पत्र को पूर्ण एवं स्पष्ट होना आवश्यक है अर्थात् त्वरित कार्रवाई हेतु पत्र पर संदर्भ संख्या दिनांक इत्यादि का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए, उसका विषय बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए। इसके साथ ही यदि उस पत्र का कोई पिछला संदर्भ हो, तो उसे भी स्पष्ट कर देना चाहिए ताकि उसकी पृष्ठभूमि से प्रारूपण को परिपूर्ण बनाया जा सके।
3. विषय का ज्ञान
प्रारूपण के विषय और उसके उद्देश्य का प्रारूपण को पूरा-पूरा ज्ञान होना अपेक्षित है। ऐसा इसलिए कि उसके बारे में लिखते समय प्रारूपण में कहीं भी किसी प्रश्न की कोई अस्पष्टता न रह जाए।
4. संक्षिप्तता
समय की अल्पव्ययता को दृष्टि में रखते हुए जहाँ तक हो सके प्रारूप को छोटा होना चाहिए ताकि अधिकारी का अधिक समय बर्बाद न हो। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि पत्रोत्तर के सभी मुद्दों का उसमें समावेश हो। इसलिए आलेखन संक्षिप्त तो हो पर पूर्ण हो। संक्षिप्त और पूर्ण प्रारूपण से आलेखकार की प्रतिभा, अनुभव, निपुणता एवं कार्यकुशलता का परिचय मिलता है।
5. उद्धरण
यदि पत्रोत्तर में किसी नियम अथवा किसी उच्चतर अधिकारी के आदेश को उद्धृत करना आवश्यक हो, तो यथासंभव मूल शब्दों में ही उसका उल्लेख किया जाना चाहिए।
6. विभाजन
प्रारूपण को मूल रूप से इन भागों में विभक्त किया जा सकता है-निर्देश, प्रकरण, वक्तव्य एवं निष्कर्ष।
इसके पहले भाग में आलेखन के विषय का वर्णन रहता है। यदि इस संदर्भ में कोई पिछला पत्र व्यवहार हो, तो उसका भी निर्देश दिया जाना चाहिए। ऐसा होने से पाठक पत्र के विषय एवं प्रसंग से परिचित हो जाता है, जिससे आगे की कार्यवाही में सुविधा होती है। दूसरे भाग अर्थात् प्रकरण एवं वक्तृत्व में विषय के पक्ष में विभिन्न तर्क प्रस्तुत कर अपने कथन की पुष्टि की जाती है। तीसरे एवं अंतिम भाग में उन तक के आधार पर निष्कर्ष निकाल कर अपनी सिफारिश दर्ज कर दी जाती है।
7. अनुच्छेदों पर क्रमांक
सामान्य रूप से आलेखन में अनुच्छेदो पर क्रम संख्या निर्दिष्ट करना आवश्यक नहीं होता है। पर, कुछ पत्र ऐसे होते हैं जिनमें कई विचारों का जब उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है, तब उनके परिच्छेदों पर क्रमांक (1, 2, 3, 4 आदि) देना चाहिए।
8. प्रतिलिपियाँ
शासकीय पत्र व्यवहार में अगर मूल पत्र की प्रतिलिपियाँ अन्य अधिकारियों को भिजवानी हो, तो पत्र के अंत में उन सभी व्यक्तियों का उल्लेख करना जरूरी होगा जिनके पास प्रतिलिपि भेजी जा रही हो।
9. संलग्न पत्र
अगर मूल पत्र के साथ कुछ संलग्न पत्र भेजना आवश्यक हो, तो पत्र के नीचे बायीं ओर उसकी सूचना दे देनी चाहिए।
10. भाषा
किसी भी आलेखन में भाषा प्रयोग का बड़ा महत्व होता है। शासकीय पत्रों की भाषा एवं साहित्यिक भाषा की प्रकृति अलग-अलग होती है। जहाँ साहित्यिक भाषा में वैयक्तिकता का आग्रह होता है, वहाँ प्रशासकीय भाषा पूर्णतः निर्वयक्तिक होती है। इसलिए आलेखन की भाषा व्याकरणसम्मत, सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए। उसके प्रयोग में संयम, गरिमा, गांभीर्य तथा निर्वैयक्तिकता होनी चाहिए। उसमें तथ्यों का सीधा उल्लेख तथा परिणाम की स्पष्ट अभिव्यक्ति होनी चाहिए। उसे किसी प्रकार के अर्थान्तर एवं अर्थभेद से परे होना चाहिए। संक्षिप्तता, शिष्टता, स्पष्टता एवं विनम्रता प्रशासनिक भाषा की अनिवार्यताएँ हैं। उसमें अतिशयोक्ति एवं वोक्तियों का कोई नहीं होता। उसकी भाषा में मुहावरों-कहावतों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। आलेखन में द्विअर्थक, अस्पष्ट, भ्रमात्मक और अनिश्चित अर्थवाले शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। उसकी भाषा एकार्थक और तथ्यपूर्ण होनी चाहिए।
11. शैली
प्रारूप अथवा मसौदा लिखने की एक विशिष्ट शैली होती है जिसका अनुपालन आवश्यक होता है। इसमें संशोधन परिवर्धन के लिए हाशिये की काफी जगह छोड़ दी जाती है तथा अनुमोदन आलेख’ अथवा आलेख स्वीकृति के लिए की चिट लगाकर सम्बद्ध अधिकारी के पास भेजी जाती है।
प्रारूपण लिखने का तरीका
1. सबसे ऊपर संख्या दी जाय।
2. उसके नीचे पत्र-प्रेषक के कार्यालय का उल्लेख हो।
3. उसके बाद प्रेषक का नाम और पद लिखा होना चाहिए।
4. उसके बाद प्रेषिती का नाम, पद और पता लिखा जाना चाहिए।
5. फिर प्रेषक का पता व दिनांक लिखा जाय।
6. इसके बाद पृष्ठ के बीच में विषय का उल्लेख किया जाय। यहाँ पात्र का सरांस एक वाक्यांश में दिया जाना चाहिए।
7. इसके बाद बायें हाथ पर संबोधन लिखा जाय।
8. संबोधन के बाद पत्र प्रारम्भ करते हुए पिछले पत्र व्यवहार का उल्लेख किया
9. पत्र के अन्त में स्वनिर्देश तथा उसके नीचे हस्ताक्षर होना चाहिए।
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