टिप्पणी किसे कहते हैं साथ ही जाने टिप्पण लिखने का तरीका। वस्तुतः यह जानना अति आवश्यक है की टिप्पण से क्या तात्पर्य है और अच्छे टिप्पण-लेखन की क्या विशेषताएं हैं?
इन सभी विषयों पर हम इस आर्टिकल के अंतर्गत बात करेंगे. ताकि टिप्पण लेखन से सम्बंधित आपकी जिज्ञासा को शांत किया जा सके.
टिप्पणी किसे कहते हैं ?
टिप्पण को प्रशासनिक पत्राचार और कार्यपद्धति का मूलाधार कहा जाय तो अनुचित न होगा। वस्तुतः किसी भी प्रशासकीय कार्य में सहायक अथवा अधिकारी जो बातें लिख कर अपने उच्च पदाधिकारी से अपेक्षित आदेश प्राप्त करता है वही टिप्पण है। कार्यालयों की आदेश प्रक्रिया का आधार टिप्पण ही है। डॉ० विनोद गोदरे की दृष्टि में “प्रशासनिक पत्राचार में टिप्पण तथा आलेखन का विशेष महत्व होता है।” तो झा एवं शर्मा की दृष्टि में “टिप्पण एक महत्वपूर्ण कार्यवाही है। अच्छी टिप्पणियाँ अधिकारी को तत्क्षण प्रभावित कर लेती हैं तथा सम्बन्धित कर्मचारी उसकी प्रशंसा का पात्र बन जाता है।
टिप्पण का अर्थ
टिप्पण का सामान्य अर्थ है किसी पत्र के विषय में आवश्यक जानकारी देते हुए सम्बद्ध सहायक या अधिकारी द्वारा उस विषय में कार्यालय के विधि-विधानों के आलोक में अपना सुझाव या मन्तव्य देना। यह टिप्पण वरिष्ठ अधिकारी के पास जाती है और वह अधिकारी टिप्पण में प्रस्तुत तथ्यों एवं नियमों के आलोक में अपने मन्तव्य अथवा आदेश देता है।
टिप्पण क्यों लिखा जाता है ?
डॉ० विनोद गोदरे ने टिप्पण लेखन के तीन उद्देश्य बताएं है …
1. सभी तथ्यों को स्पष्ट रूप से तथा संक्षेप में प्रस्तुत करना और यदि विषय से संबंधित किसी मामले में कोई विशेष निर्णय या दृष्टान्त उपलब्ध हो तो उसका उल्लेख करना।
2. वांछित विषय या सम्बद्ध पत्र पर अपना स्पष्ट मन्तव्य देना।
3. यह स्पष्ट करना कि सम्बद्ध पत्र पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए।
सारांशत: टिप्पण में विषय से संबंधित सभी तथ्य और हिताहित से जुड़ी सभी आवश्यक जानकरी प्रस्तुत करना आवश्यक है।
टिप्पण लिखने का तरीका
1. टिप्पण संक्षिप्त और सटीक हो।
2. जिस पत्र के सन्दर्भ में टिप्पण लिखी जा रही हो उसका सारांश लिखा जाय।
3. पुनरावृत्ति न हो।
4. यदि टिप्पण में किसी भूल या गलत विवरण की सूचना देनी हो तो शिष्ट भाषा में दी जाय।
5. टिप्पणीकार को भाषा प्रयोग में सावधान रहना चाहिए। असंगति और भ्रान्ति पैदा करनेवाली भाषा का प्रयोग न हो। भाषा इतनी साफ, सरल और अभिप्राय इतना स्पष्ट हो कि अधिकारी को टिप्पणीकार की नीयत पर संदेह न हो।
6. टिप्पणीकार को पक्षधर होकर पक्ष अथवा विपक्ष में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर नहीं प्रस्तुत करना चाहिए।
7. टिप्पण में साहित्यिक, आलंकारिक और द्वयर्थक भाषा का प्रयोग एकदम नहीं होना चाहिए। मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग भी कभी नहीं करना चाहिए। वस्तुतः टिप्पणी अभिधा में लिखी जानी चाहिए, लक्षणा या व्यंजना में नहीं।
8. टिप्पणी लेखन के बाद सहायक को नीचे बाँयी ओर अपना हस्ताक्षर करके तिथि डाल देनी चाहिए। सब मिलाकर यही कहा जा सकता है कि टिप्पणीकार सहायक अपने अधिकारी की आँख और कान दोनों होता है तथा टिप्पणी के आलोक में ही अधिकारी किसी निर्णय पर पहुंचता है।
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