Thursday, October 3, 2024
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हिंदी के प्रसिद्ध मुहावरे और उनके अर्थ

प्रस्तुत है हिंदी के कुछ प्रसिद्ध मुहावरे एवं उनके अर्थ, ये मुहावरे हम अपनी आम बोलचाल की भाषा में अक्सर उपयोग में लाते है.

जिनका अर्थ जानने की उत्सुकता आपके अन्दर अवश्य होगी.

1. नीम हकीम खतरे जान

‘नीम’ का शाब्दिक अर्थ है आधा, हकीम का अर्थ है चिकित्सक (अर्थात् वैद्य या डॉक्टर)। इस प्रकार ‘नीम हकीम का अर्थ हुआ आधा चिकित्सक अर्थात् एक ऐसा चिकित्सक (हकीम या वैद्य या डॉक्टर) जिसे रोगों की चिकित्सा का पूरा ज्ञान न हो। जो व्यक्ति चिकित्सा संबंधी ज्ञान या शिक्षा प्राप्त किये बिना ही बीमारों की चिकित्सा का धंधा करता हो, उसे ‘नीम हकीम’ कहा जायेगा।

यह तो एक सीधी सी बात है कि बिना ज्ञान के कोई भी कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता। अधूरा ज्ञान किसी कार्य के सम्यक सम्पादन में सहायक नहीं हो सकता। अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘Little knowledge is a dangerous thing” एक अनाड़ी बढ़ई अच्छे काष्ठ-उपस्कर नहीं बना सकता, एक अनाड़ी चित्रकार अच्छे चित्र नहीं बना सकता, किसी विषय का अधूरा ज्ञान प्राप्त शिक्षक उस विषय की समुचित शिक्षा नहीं दे सकता इसी प्रकार एक ऐसा चिकित्सक, जिसे चिकित्सा संबंधी पूरा या समुचित ज्ञान प्राप्त न हो, किसी रोगी का सही इलाज नहीं कर सकता। ऐसे नीम हकीम (अधूरे ज्ञानवाले चिकित्सक) से इलाज कराने वाले व्यक्ति की जान खतरे में पड़ सकती है। हकीम को बीमारी के इलाज की सही जानकारी नहीं होने के कारण बीमार आदमी का गलत इलाज हो जाने से उस आदमी की जान जोखिम में पड़ सकती है। नीम हकीम खतरे जान’ का यही भावार्थ है। यह कहावत एक ओर इस तथ्य को प्रस्तुत करती है कि अधूरा ज्ञान आपत्तिजनक होता है, दूसरी ओर अधूरे ज्ञानवाले व्यक्तियों से किसी समस्या के समाधान में सहायता लेने से बचने को हिदायत भी देती है।

2. नाच न जाने आँगन टेढ़ा 

इस कहावत का सीधा अर्थ यह है कि जो कलाकार किसी कला के प्रदर्शन में अपनी अज्ञानता के कारण सफल नहीं होता, वह कला के उपकरणों पर ही दोग मद देता है। किसी को नाचना न आता हो, फिर भी वह नाने और उसके नाचने की कला जब लोगों को अरुचीकर लगे तो वह अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिए उस आंगन को ही टेवा बताने लगे जिसमें वह नाच रहा हो, तो यह बात कितनी हास्यास्पद होगी । जो व्यक्ति किसी कला के प्रदर्शन या किसी कार्य के सम्पादन में दक्ष नहीं होता और कला प्रदर्शन या कार्य सम्पादन में अपनी असफलता का कारण अपनी अयोग्यता को न मानकर साधनों पर हो दोषारोपण करने लगता है, उस पर यह कहावत पूर्णत चरितार्थ होती है। इस कहावत से जुड़ा एक अन्य तथ्य यह भी है कि जो कलाकार निपुण होते हैं, वे साधनों के त्रुटिपूर्ण होने पर भी कला-प्रदर्शन में सफलता प्राप्त कर लेते है। उनकी कला प्रवीणता कला-प्रदर्शन के साधनों की त्रुटियों को ढक देती है-साधना या उपस्करों को त्रुटियाँ कुशल कलाकारों की निपुणता को अवरुद्ध नहीं कर पाती।

3. आगे नाथ न पीछे पगहा

इस कहावत का सीधा अर्थ है-आगे नाथ न होना, पीछे पगहा न होना। नाथ’ कहते है उस रस्सी को जो पालतू पशुओं के नथुनो को छेदकर नथुनों में घुसायी जाती है और फिर नमुळे से बाहर निकालकर उनकी गरदन में बांध हो जाती है। कहते है रखे जाते है। उस रस्सी को जो पशुओं की गरदन में बांधी जाती है, जिसके सहारे उन्हें छूटे से बांध जाता है। इसकनाथ’ और ‘पगड़े के प्रयोग से पालतू पशु नियंत्रण जिन पशुओं पर और पगड़े का प्रयोग नही होता वेगण में नहीं रहते। गदहा एक ऐसा पालतू पशु है जिन पर नाथ-महे का प्रयोग नहीं होता फल प्राय उच्छृंखल हो जाते हैं। जब पास बरते समय उनके दोनों पिछले पैरों में छोटी-सी रस्सी का बंधन द्वा दिया जाता है, तब वे में होते है, भाग नहीं पाते। कहावन का सरलार्थ यह हुआ कि जिन पशुओं पर और पगड़े का प्रयोग नहीं किया जाता थे में नहीं रहते। इसका विशेषार्थ यह है कि व्यक्ति उच्छृंखल होता है, उस पर किसी तरह का दबाव होने के कारण उ सके आचरण संयम और अनुशासन का अभावहोता है। इस के भावार्थ की सीमा में ऐसे लोग भी आ जाते है जिन पर किसी प्रकार के दायित्व का भार नहीं होता। ऐसे लोगों की जीवन शैली निन्ध होती है। चूंकि ऐसे लोगो को किसी प्रकार के दायित्व के निर्वहन की चिन्ता नहीं रहती, इसलिए ये निजी जीवन में पूरी तरह आजाद होते है और निपूर्वक जीवनयापन करते हैं। दूसरी ओर जिन लोगा पर विभिन्न प्रकार के पारिवारिक दायित्वों का भार होता है, वे अपने को पूरा करने में लगे रहते है। उनका जीवन निर्वन्ध नहीं होता। उनके उत्तरदायित्व उन्हें मुक्त नहीं होने देते। उनका जीवन अपनी जवाहियों को पूरा करने में बीतता है।

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